हलिया में आंगनबाड़ी केंद्रों की बदहाल स्थिति: ताले लटकते केंद्र, भूखे लौटते बच्चे

हलिया में आंगनबाड़ी केंद्रों की बदहाल स्थिति: ताले लटकते केंद्र, भूखे लौटते बच्चे

कार्यकर्त्री अनीता देवी की अनदेखी बनी मासूमों के भविष्य में बाधा, पोषण और शिक्षा दोनों प्रभावित"

हलिया, मिर्जापुर :- सिगटा गांव स्थित आंगनबाड़ी केंद्र की स्थिति इन दिनों बद से बदतर हो गई है। केंद्र पर कार्यरत आंगनबाड़ी कार्यकत्री अनीता की लापरवाही के चलते न सिर्फ बच्चों का पोषण प्रभावित हो रहा है, बल्कि उनकी प्रारंभिक शिक्षा भी खतरे में पड़ गई है।

स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि केंद्र अक्सर समय पर नहीं खुलता, और जब खुलता भी है तो बच्चों के लिए न तो पोषण आहार समय पर उपलब्ध होता है और न ही कोई शैक्षिक गतिविधि कराई जाती है। कई बार बच्चों को खाली हाथ ही घर लौटना पड़ता है।

प्रदेश सरकार जहां एक ओर बच्चों और गर्भवती महिलाओं के पोषण, स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर करोड़ों रुपये की योजनाएं चला रही है, वहीं दूसरी ओर मिर्जापुर जिले के हलिया क्षेत्र में आंगनबाड़ी केंद्रों की हकीकत सरकार की नीयत और निगरानी पर बड़ा सवाल खड़ा कर रही है।

समय पर नहीं खुलते केंद्र, भूखे लौटते बच्चे

स्थानीय निवासियों ने बताया कि अधिकतर केंद्र सुबह 9:15 बजे तक नहीं खुलते, जबकि कुछ केंद्र दिनभर बंद ही रहते हैं। जिन केंद्रों के दरवाजे खुलते भी हैं, वहां दोपहर 12 बजे से पहले ही ताले लग जाते हैं। इससे छोटे-छोटे बच्चे और गर्भवती महिलाएं पोषण आहार से वंचित रह जाते हैं और भूखे पेट लौटने को मजबूर हैं।

सामग्री की लूट, पोषण आहार का दुरुपयोग

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, कई कार्यकर्ता व सहायिकाएं पोषण सामग्री और बच्चों के लिए उपलब्ध चीजों को अपने निजी उपयोग के लिए घर ले जाती हैं। कुछ मामलों में तो यह सामग्री बाजार में बेचने तक की बातें सामने आई हैं। खराब व एक्सपायरी खाद्य सामग्री को कचरे में या मवेशियों को खिला दिया जाता है, जो विभागीय लापरवाही और भ्रष्टाचार की चरम सीमा दर्शाता है।

केंद्रों की उपस्थिति सिर्फ रजिस्टर कागजों तक सीमित 

कई केंद्र केवल कागजों पर चालू दिखाए जा रहे हैं। न तो बच्चों की उपस्थिति है, न कोई शैक्षणिक गतिविधि। कक्षाएं वीरान पड़ी रहती हैं और कुर्सियाँ खाली। बच्चों के नाम दर्ज हैं लेकिन न अटेंडेंस होती है और न ही शिक्षा संबंधी प्रयास।

निरीक्षण नहीं, बस खानापूर्ती 

पर्यवेक्षकों की गैर-मौजूदगी और विभागीय अधिकारियों की उपेक्षा ने हालात को और बिगाड़ दिया है। महीनों तक निरीक्षण नहीं होता, जिससे लापरवाह कार्यकर्ताओं के हौसले और बुलंद हो जाते हैं। शिकायतों के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती।

प्रशासनिक चुप्पी, योजनाओं पर प्रश्नचिन्ह

महिला एवं बाल विकास विभाग की योजनाएं कागजों पर ही चल रही हैं। वास्तविक लाभार्थी—बच्चे और महिलाएं—भ्रष्टाचार और प्रशासनिक उदासीनता की भेंट चढ़ रहे हैं। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई तो आने वाली पीढ़ी को इसका गंभीर नुकसान उठाना पड़ सकता है।

जनता की मांग: निष्पक्ष जांच और कठोर कार्रवाई

स्थानीय लोगों की मांग है कि क्षेत्र के सभी आंगनबाड़ी केंद्रों की निष्पक्ष जांच करवाई जाए और लापरवाह कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं एवं अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। साथ ही, नियमित निरीक्षण की व्यवस्था हो ताकि शासन की योजनाएं ज़रूरतमंदों तक सही मायनों में पहुंच सकें।

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