श्राद्ध से लेकर शरद पूर्णिमा तक, खीर का वैज्ञानिक महत्व :

श्राद्ध से लेकर शरद पूर्णिमा तक, खीर का वैज्ञानिक महत्व :

पंडित सुरेंद्र शुक्ला


 श्राद्ध से लेकर शरद पूर्णिमा तक, खीर का वैज्ञानिक महत्व :


वर्षा ऋतु के बाद जब शरद ऋतु आती है तो आसमान में बादल व धूल के न होने से कड़क धूप पड़ती है। जिससे शरीर में पित्त कुपित होता है।

इस समय गड्ढों आदि मे जमा पानी के कारण बहुत बड़ी मात्रा मे मच्छर पैदा होते हैं इससे मलेरिया होने का खतरा सबसे अधिक होता है।शरद में ही पितृ पक्ष (श्राद्ध) आता है पितरों का मुख्य भोजन है खीर।

इस दौरान 5-7 बार खीर खाना हो जाता है। इसके बाद शरद पूर्णिमा को रातभर चांदनी के नीचे चांदी के पात्र में रखी खीर सुबह खाई जाती है।

यह खीर हमारे शरीर में पित्त का प्रकोप कम करती है। शरद पूर्णिमा की रात में बनाई जाने वाली खीर के लिए चांदी का पात्र न हो तो चांदी का चम्मच खीर में डाल दे, लेकिन बर्तन मिट्टी, कांसा या पीतल का हो।(क्योंकि स्टील जहर और एल्यूमिनियम, प्लास्टिक, चीनी मिट्टी महा-जहर है) यह खीर विशेष ठंडक पहुंचाती है।

गाय के दूध की हो तो अति उत्तम, विशेष गुणकारी होती है। इससे मलेरिया होने की संभावना नहीं के बराबर हो जाती है। इस ऋतु में बनाई जाने वाली खीर में केसर और मेवों का प्रयोग कम करें। यह गर्म प्रवृत्ति के होने से पित्त बढ़ा सकते हैं। हो सके तो सिर्फ इलायची और चारोली डालें। 

जायफल अवश्य डालें।

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