प्रतिष्ठित कायस्थ घराने (मिट्ठू लाल) की सिद्ध पीठ में अलौकिक मूर्तियों को है वर्षों से प्राण प्रतिष्ठा का इंतजार...

प्रतिष्ठित कायस्थ घराने (मिट्ठू लाल) की सिद्ध पीठ में अलौकिक मूर्तियों को है वर्षों से प्राण प्रतिष्ठा का इंतजार...

प्रतिष्ठित कायस्थ घराने (मिट्ठू लाल) की सिद्ध पीठ में अलौकिक मूर्तियों को है वर्षों से प्राण प्रतिष्ठा का इंतजार...


  •  दिसंबर 2018 में बांके बिहारी मंदिर की मूर्तियों का कलाहरण पद्धति से कराया गया था स्थान परिवर्तन
  • बड़ा सवाल: आख़िर क्यों और कब तक रहेगा सिद्ध मूर्तियों को प्राण प्रतिष्ठा का इंतजार
  •  आचार्यों का मत: पूर्व तहसीलदार विदुषी सिंह ही करवा सकती हैं पुनर्स्थापना
  •  तत्कालीन डीएम आञ्जनेय कुमार सिंह ने बनारस के आचार्यों के परामर्श पर करवाया था मूर्तियों का स्थान परिवर्तन
  • मंदिर समिति की तत्कालीन पदेन प्रबन्धक को फिर से बनना होगा यजमान, तभी मूर्तियों में लौटेंगी शक्तियां
  •  तो फ़िर क्या एक साल से पत्थरों की हो रही है पूजा...!

    

(कमलेन्द्र सिंह)

पी पी एन न्यूज

फतेहपुर। 

श्रद्धा के साथ भावपूर्ण इतिहास ने जब-जब करवट ली, मानो समय, समाज और व्यवस्था  स्वयं साक्षी बन गई। 21 दिसम्बर 2018 को सिद्ध श्री बांके बिहारी जी महाराज विराजमान मंदिर में तत्कालीन डीएम आञ्जनेय कुमार सिंह ने मन्दिर के नवीन स्वरूप के लिए वैदिक रीति-रिवाज़ से भूमि पूजन कर जो पटकथा लिखी थीं, व्यवस्था पालकों ने क्या उसकी इबारत का ख्याल रखा, यह अपने आप में बड़ा सवाल है। सरकारी नियंत्रण वाले इस ऐतिहासिक मन्दिर से "कला हरण" पद्धति द्वारा ट्रस्ट की पदेन प्रबन्धक तत्कालीन तहसीलदार (श्रीमती विदुषी सिंह) ने मूर्तियों को मूल स्थान से तो हटवा दिया, किन्तु लगभग ढ़ाई साल बाद भी आधा दर्जन से अधिक सिद्ध मूर्तियां पुनः प्राण प्रतिष्ठा की बाट जोह रही हैं...?

       उल्लेखनीय हैं कि इतिहास खंगालने पर मिलता है कि 1730 में जनपद के ख्याति लब्ध कायस्थ कुल श्रेष्ठ मेहरबान सिंह व उनके महाप्रतापी पुत्र शिव अम्बर लाल ने श्री बांके बिहारी जी महाराज विराजमान मन्दिर की स्थापना कारवाई थी। स्थापना के समय सिर्फ़ बाकें बिहारी जी (भगवान कृष्ण के बाल्यकाल) की मूर्ति स्थापित कारवाई थी। लगभग 50 वर्ष बाद इसी परिवार के बाबू खुशवक्त रॉय ने श्री जी (राधा) एवं किशोरावस्था के कृष्ण की दो मूर्तियां स्थापित कारवाई। कुछ वर्ष बाद इन्हीं के द्वारा ऐतिहासिक नर्मदेश्वर (शिवलिंग) मन्दिर की भी स्थापना करवाए जानें के प्रमाण मिलते हैं।

इसके बाद 1935 के क़रीब रईस बाबू नानक प्रसाद श्रीवास्तव (तत्कालीन चेयरमैन नगर पालिका परिषद) व उनके मजिस्ट्रेट अनुज कामता प्रसाद श्रीवास्तव ने राधा एवं कृष्ण की दो और मूर्तियां स्थापित कारवाई। शिव लिंग को छोड़कर मेहरबान सिंह से बाबू नानक प्रसाद जी तक स्थापित करवाई गई सभी मूर्तियां अष्टधातु की थी...! कुछ वर्ष बाद इन्हीं के द्वारा भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, माता जानकी व लक्ष्मण और फिर हनुमान जी की मूर्तियों को विशुद्ध रूप से प्राण प्रतिष्ठित करवाकर स्थापित करवाया गया। इस मन्दिर में पांच मूर्तियां अष्टधातु और चार पत्थर की लगभग एक ही स्थान पर स्थापित थी।

     2018 के मध्य में तत्कालीन डीएम कुमार प्रशान्त के निलम्बन के बाद यहां के जिलाधिकारी के पद पर तैनात किए गए आञ्जनेय कुमार सिंह ने इस मन्दिर का कायाकल्प करवाने का जब बीड़ा उठाया तो मन्दिर भवन के पुनर्निर्माण के लिए ज़रूरी पुराने भवन को तोड़ने और इसके लिए स्थापित सिद्ध मूर्तियों को हटवाने के लिए एक वैदिक बाधा सामने आ गई कि आख़िर कैसे इन सिद्ध मूर्तियों को मूल स्थान से हटाया जाए। सूत्र बताते हैं कि आञ्जनेय ने इसके लिए बाकायदें बनारस के विद्वान आचार्यों से सम्पर्क किया और फिर "बांदा के आचार्य पयासी जी" द्वारा त्रिदिवसीय पूजन कार्यक्रम के बाद "वैदिक विधि कला हरण" के विधान को अमल में लाकर यह प्रार्थना की कि इस स्थान (मन्दिर) को भव्य स्वरूप देने के लिए स्थान परिवर्तन आवश्यक हैं, इसलिए समस्त सम्बन्धित देवता पुनर्स्थापना तक देव लोक को प्रस्थान करें और सभी मूर्तियों को मूल स्थान से हटवा दिया गया।

     कला हरण के दौरान मन्दिर ट्रस्ट की पदेन प्रबन्धक (तहसीलदार) विदुषी सिंह यजमान बनीं और वैदिक बाध्यता के मुताबिक़ उन्हें मन्दिर भवन निर्माण पूर्ण होने पर उपरोक्त मूर्तियों को त्रिदिवसीय वैदिक पद्धति से पुनः स्थापित करवाने का संकल्प लेना पड़ा किन्तु मन्दिर निर्माण लगभग पूर्ण हुए एक साल होने के बावजूद विदुषी सिंह को अपना संकल्प याद नहीं रहा। कहते हैं मूर्तियां तो नवीन स्थान पर रख दी गईं हैं किन्तु विधि-विधान से प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया अभी तक पूर्ण नहीं हो पाईं है। यानी जिन मूर्तियों की मौजूदा समय में पूजा अर्चना हो रही हैं, उनमें शास्त्रीय मान्यता के मुताबिक़ शक्तियों का वास नहीं हैं...! विद्वान आचार्यों का मत हैं कि इसके लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ तत्कालीन तहसीलदार विदुषी सिंह को पुनः यजमान बनकर पूरे वैदिक पद्धति से कम से कम तीन दिनों तक यहां रुककर सभी मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा करवानी होगी, तभी इनकी पूजा फलदायक होगी...!

       विद्वानों का यह भी मत है कि कलाहरण पद्धति से विस्थापित विग्रहों को अभी तक पुनर्प्राण प्रतिष्ठित न कराना वैदिक, आध्यात्मिक और शास्त्रीय आधार पर सही नहीं है। सही बात है कि जब तक विग्रहों को पुनर्प्राण प्रतिष्ठा से अभिमंत्रित नहीं किया जाता है तब तक श्रद्धालुजन किसी भगवान की विग्रह या मूर्ति की नहीं बल्कि महज पत्थरों की ही पूजा कर रहे हैं। प्रशासन को मंदिर की श्रेष्ठता और विग्रहों के प्रति जन आस्था को देखते हुए शीघ्र और उपयुक्त समय में विग्रहों की पुनर्प्राण प्रतिष्ठा करानी चाहिए।

    एक बड़ा सवाल है कि आख़िर क्यों एक वर्ष से भी अधिक समय से इन सिद्ध मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा नहीं कारवाई जा सकी हैं? इसके जिम्मेदार कौन? सरकारी तन्त्र या फ़िर कुत्सित मानसिकता वाले! जिन्हें हर समय अपना प्रभुत्व खतरे में पड़ जानें का भय सालता रहता है। जिम्मेदारों को आख़िर किसका और क्यों इंतजार है? इस सवाल पर हर किसी की जुबान बन्द है, कोई कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं। एक आचार्य ने कहा कि मौजूदा समय में फतेहपुर की डीएम महिला है, उन्हें आगे बढ़कर आञ्जनेय द्वारा छूटे इस स्मरणीय  सद्कार्य  को सहेजना चाहिए...!

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