अपनो की बेरुखी से मुफलिसी के दौर से गुजर रहा है सहकारिता का बेशकीमती उपक्रम

अपनो की बेरुखी से मुफलिसी के दौर से गुजर रहा है सहकारिता का बेशकीमती उपक्रम

पी पी एन न्यूज (विशेष)

कमलेन्द्र सिंह

अपनो की बेरुखी से मुफलिसी के दौर से गुजर रहा है सहकारिता का बेशकीमती उपक्रम


 शासन की मंशा पर नहीं हो रहा अमल, एक दशक से बाधित है फतेहपुर जिला सहकारी बैंक का व्यावसाय


अखिलेश सरकार की दरियादिली का भी नहीं हुआ कोई फायदा


फतेहपुर के हिस्से का पैसा यूपीसीबी ने अपने दूसरे उपक्रमों में लगाया

दस करोड देंगे, पर 80 फीसदी कृषि ऋण समितियों से व्यावसाय कराने की रखी शर्त

फतेहपुर। तकरीबन पांच वर्ष से जिला सहकारी बैंक की दो दर्जन से अधिक शाखाओं को उनके हक का पैसा न देकर व्यवसायिक दृष्टिकोण से हालत खस्ता कर देने के बाद यूपीसीबी (उत्तर प्रदेश सहकारी बैंक) ने अब एक और शर्त थोपकर आर्थिक संकट से उबरने की राह में रोड़ा अटका दिया है। यूपीसीबी तकरीबन 17वां हिस्सा 10 करोड़ इस शर्त पर देने को तैयार हुआ है कि इसमें 80 फीसदी लोनिंग कृषि कृषि ऋण समितियों के माध्यम से वह 20 फीसदी व्यावसाय बैंक के माध्यम से हो, यानी पैसा देने से पहले ही समितियों के माध्यम से पैसा लुटाने का ताना बाना बुना जा रहा है।

   उल्लेखनीय है कि 2008-09 में फतेहपुर जिला सहकारी बैंक की खागा, खखरेरू एवं किशनपुर शाखाओं में आश्चर्यजनक ढंग से 88.56 करोड़ की वित्तीय गड़बडी (गबन) हुआ था। यह मामला 2011 में जब उजागर हुआ तो तत्कालीन बैंक प्रबन्धतंत्र के साथ-साथ जिला प्रशासन, शासन, यूपीसीएब समेत तत्कालीन बसपा सरकार के होश उड़ गये थे। मामला इतना गंभीर था कि आनन फानन में आधा सैकड़ा के करीब बैंक के शाखा प्रबंधक, बैंक के अन्य कर्मचारी, समितियों के सचिव, लेखाकार समेत तत्कालीन सचिव/महाप्रबंधक व अन्य के खिलाफ एफआइआर दर्ज करा दी गई और सभी को निलंबित कर कड़ी विभागीय कार्यवाही शुरू कर दी गई। अधिकांश आरोपी जेल भेजे गए किन्तु रिकवरी के नाम पर एक भी पैसा नहीं आया। वहीं इस मामले को आरबीआई ने गंभीरता से लिया और सूबे के जिन 16 जिला सहकारी बैंकों का लाइसेंस निरस्त किया उनमें फतेहपुर का नाम भी शामिल था।

     2011 से 2017 के मध्य का दौर सहकारी आंदोलन की इन अहम कड़ियों के लिए काफी बुरा गुजरा। मुफलिसी का आलम यह था कि न तो कर्मचारियों को समय से वेतन मिल रहा था और न ही किसी प्रकार के बैंकिंग व्यावसाय की स्थिति बन रही थी। इन लगभग 06 सालों में खाता खोलने तक में रोक थी। इस दौरान शासन स्तर पर सघन प्रयासों के चलते अखिलेश सरकार ने अपने कार्यकाल के लगभग अंत में हालातों को समझते हुए खासकर सरकार के वरिष्ठ मंत्री शिव पाल सिंह यादव ने अपना वीटो लगाते हुए आरबीआई में सरकार की जमानत पर फतेहपुर जिला सहकारी बैंक का न सिर्फ लाइसेंस बहाल कराने में अहम भूमिका अदा की बल्कि अकेले डीसीबी फतेहपुर को एनपीए से मुक्त करते हुए 1.32 अरब रूपए भी यूपीसीबी को उपलब्ध करा दिया गया किंतु तभी विधान सभा चुनाव की घोषणा और फिर सपा सरकार के पतन का यूपीसीबी ने फायदा उठाते हुए यह भारी भरकम धनराशि डीसीबी फतेहपुर को न देकर इसकी कई एफडी बनवाकर अपने अन्य उपक्रमों में प्रयोग कर लिया।

   सूबे में सत्ता परिवर्तन के बाद पावर में आई भाजपा की योगी सरकार को कहीं से भी सहकारिता आंदोलन के सफल संचालन मद में गंभीर नहीं कहा जा सकता है। सरकार के लगभग साढ़े चार साल गुजरने को है और मौजूदा समय में डीसीबी फतेहपुर में बोर्ड भी भाजपा का हैं, बावजूद इसके सहकारी बैंक को अपडेट करने के बाबत लेश मात्र भी प्रयास सरकार स्तर से न होने और भारी भरकम धनराशि यूपीसीबी द्वारा दबा लेने से यह ख्याति लब्ध बैंकिंग सेक्टर कम से कम इस जनपद में कोमा जैसी स्थिति में पहुंचता जा रहा है। बैंकर्स बताते हैं कि 1.32 अरब रूपए जो डीसीबी फतेहपुर के पुनरोद्धार के लिए अखिलेश सरकार ने यूपीसीबी को दिए थे, उसका मूल तो छोड़ो ब्याज भी साल-छः माह में थोडा बहुत ब्याज बख्शीस स्वरूप दिया जाता है। जो कर्मचारियों के वेतन आदि के लिए ही पर्याप्त नहीं हो पाता है क्योंकि डीसीबी की आर्थिक स्थिति खस्ता है इसलिए लोनिंग आदि बन्द होने से आय के स्रोत तो पूरी तरह बन्द है, अन्य संभावनाएं भी काफी कम बची हैं।

      खबर है कि 2017 में तत्कालीन सरकार ने फतेहपुर जिला सहकारी बैंक को जो 1.32 अरब रूपए दिया था और यूपीसीबी ने उसकी एफडी बनवा ली थी, उसमे कई एफडी की मैच्योरिटी अगले कुछ दिनों में होनी है। यह धनराशि अब बढ़कर 1.69 करोड़ के करीब पहुंच गई है।

भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार यूपीसीबी ने कुछ तकनीकी कारणों से 10 करोड़ की एक एफडी फतेहपुर जिला सहकारी बैंक को ट्रांसफर करने का लगभग मन तो बनाया है, किन्तु शर्त रखी हैं कि इस धनराशि से सिर्फ 20 फीसदी ही लोनिंग बैंक शाखाएं कर पाएंगी, जबकि 80 फीसदी व्यवसाय कृषि ऋण समितियों के माध्यम से ही किया जा सकेगा। जबकि स्थानीय बैंकर्स का कहना है कि पूर्व की गड़बड़ियों में कृषि ऋण समितियों की भूमिका खासी संदिग्ध रही हैं। अगर 80 फीसदी व्यावसाय की बाध्यता समितियों के माध्यम से रहेगी तो फिर गड़बड़ी की संभावनाएं बढ जायेंगी। इधर उच्चाधिकारी प्रायः अधीनस्थो को निर्देशित करते रहे हैं कि बैंकिंग व्यवसाय बढाया जाए किन्तु अब सवाल यह उठता है कि इस सबके लिए आखिर जिम्मेदार कौन है।

यूपीसीबी पर क्या सरकार/शासन का इतना भी दबाव नहीं रहा कि अंधेरगर्दी का संज्ञान लेकर दिशा-निर्देश दिए जाएं या फिर कहीं न कहीं सिस्टम से जुड़े जिम्मेंदार कथित तौर पर कायदे का कोआपरेटर विहीन सरकार यूपीसीबी पर नियन्त्रण नहीं पा पा रही है, यह अपने आप में बड़ी जांच का विषय है।

उधर इस संबंध में जब फतेहपुर जिला सहकारी बैंक के सचिव/मुख्य कार्यपालक अधिकारी आवेश प्रताप सिंह व सहायक आयुक्त एवं सहायक निबंधक सहकारिता राम नयन सिंह से सम्पर्क करने का प्रयास किया गया तो वह उपलब्ध नहीं हुए।

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